पहाड़ों की चोटियों पे एड़ियां टिका के
ठंडी हवाओं से दो पल यूं बातें मैं कर लूं
कुछ अपनी कहूँ कुछ उसकी सुनूँ और..
बहती नदी के बिछड़े इन छोरों को तर लूँ
डालों पर बैठी इस कोयलिया के गीतों में
दो छंद अपनी इस आशा के जोड़ूँ
थोड़ा चलूँ और थोड़ा रुकूँ मैं
किलसाते डरों की सीमाएं मैं तोड़ूं
निरे बंधन में जकड़े पागल इस मन को
समझाऊं सहलाऊँ थोड़ा प्यार मैं कर लूं
सुगम प्रवाह सा कर लूँ मैं पथ ये
इन मुठ्ठियों में जीवन मुस्कान मैं भर लूँ
संकोच को छोड़ूं, मोहपाश को त्यागूं
खुद से खुद का ये रिश्ता मैं जी लूँ
चख लूं थोड़ा नीला आसमाँ भी और..
थोड़ा थोड़ा सा बरसता ये बादल भी पी लूँ
उम्मीद की खिड़की से झाँके यूँ हिम्मत
मुश्किलों कहें, अरे अब बस भी कर!!
पल पल को जोड़ूँ, अपना वक़्त बना लूँ
छोटी छोटी हारों से मैं, अपनी जीत सजा लूँ
One thought on “कोशिश”
चलो बहुत दिनों बाद ही सही एक कोशिश तो हुई इस सूने पड़े ब्लॉग पे एक हरियाली लाने की; अच्छी कोशिश है और उस पे भी अच्छी बात है ये है की ये कोशिश हिंदी में हुई है
ख़ैर, बहुत बहुत धन्यवाद आपका आशा है की आगे भी इसी तरह कुछ ना कुछ पढ़ने के लिए मिलता रहेंगा
मुश्किलों कहें ये ही लिखना था या फिर ये मुश्किलें कहें होना चाहिए था ?